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गेहूं की ये किस्मे देती हैं बम्पर उत्पादन, कम पानी में भी देती हैं बेहतर उत्पादन

गेहूं की खेती: जैसा की जानते हैं की अभी हमारे देश में धान का सीजन चल रहा है ऐसे में देश के अधिकांश किसानों ने अपने खेत में धान की फसल लगा रखी है. इसके बाद किसान अपने खेत में गेहूं की फसल लगाने वाले हैं. इसीलिए आज हम आपको बताने वाले हैं गेहूं की ऐसी किस्म में बारे में बताने जा रहे हैं जो बम्पर उत्पादन देती है तो आइये जानते हैं कौनसी किस्म देती हैं सबसे जायदा उत्पादन..

ये किस्मे देती हैं बम्पर उत्पादन

जैसा की हमने बताया की किसान कुछ ही दिनों के बाद गेहूं की बुवाई में व्यस्त हो जायेंगे. अभी खरीफ का सीजन चल रहा है और आने वाला सीजन रबी की फसलों का है रबी फसलों में  गेहूं की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। हमारे देश में लाखों किसान गेहूं की खेती करते हैं। ऐसे में अगर किसान गेहूं की पुरानी किस्मे छोड़कर नै और उन्नत गेहूं की किस्म की बुवाई करें तो इससे काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।वर्तमान में कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं की कई नई और अच्छी किस्में विकसित की है जो अधिक उत्पादन तो देती ही हैं इसी के साथ साथ रोग प्रतिरोधी भी हैं। इन्हीं किस्मों में से गेहूं की एक किस्म पूसा गौतमी एचडी 3086 है इसे पूसा संस्थान नई दिल्ली की के द्वारा विकसित किया गया है। अगर बात करें इस किस्म की खासियत के बारे में तो यह बेहतर उत्पादन देने वाली एक रोग प्रतिरोधी किस्म है यह एक हैक्टेयर में 75-80 क्विंटल तक की पैदावार देती है।

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पूसा गौतमी एचडी 3086

पूसा गौतमी एचडी 3086 किस्म सामान्य गेहूं की किस्म के मुकाबले अधिक उत्पादन देने वाली मानी गयी है यह किस्म समय से बुवाई और सिंचित अवस्था के लिए अधिक उपयुक्त मानी गई है। अगर बात करें इस फसल को तैयार होने में लगने वाले समय की तो यह उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में 145 दिन में तैयार हो जाती है वहीं उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में यह 121 दिन में ही पककर तैयार हो जाती है। खास बात यह है कि यह किस्म रोगों के प्रति भी प्रतिरोधकता दिखाती है जैसे इसमें पीले तथा भूरे रतुआ रोग के लगने की सम्भावना कम है इसका मतलब गेहूंकी इस किस्म पर इन रोग का प्रकोप कम होता है। इसी के साथ इसमें प्रोटीन की मात्रा भी अधिक पाई जाती है। यह 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है. इसे उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभाग को छोड़कर) आदि स्थानों पर बोया जा सकता है। वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में झांसी डिवीजन को छोड़कर इसकी खेती की जा सकती है। इसके अलावा गेहूं की इस किस्म को देश के अलग अलग हिस्सों जैसे:- उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम और अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के मैदानी क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है। अगर इसकी उपज की बात करें तो यह किस्म अधिकतम 80 क्विंटल प्रतिहक्टेयर तक का उत्पादन देती है.

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गेहूं की डीबीडब्ल्यू 296 (करण ऐश्वर्या)

गेहूं की डीबीडब्ल्यू 296 (करण ऐश्वर्या) किस्म को सूखे से प्रभावित इलाकों के लिए तैयार किया गया है. इसे आईसीएआर- भारतीय गेहूं औ जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित किया गया है। जैसा की हमने ऊपर बताया की यह किस्म सूखे के प्रति सहनशील है यानि ऐसी जगह इसकी खेती की जा सकती है जहाँ सिंचाई की अच्छी व्यवस्था नहीं है.। इस किस्म की उपज क्षमता अधिकतम 83.3 क्विंटल है। वहीं अगर बात करें इसकी औसत उपज की तो यह गेहूं की किस्म 56.1 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक की औसत उपज क्षमता रखती है। इसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभाग को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी संभाग को छोड़कर) इसकी खेती की जा सकती है साथ ही भारत के अन्य कई हिस्सों में भी इसकी खेती की जा सकती है।

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डीबीडब्ल्यू 327 (करण शिवानी)

गेहूं की डीबीडब्ल्यू 327 (करण शिवानी) यह किस्म विशेष कर रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता की द्रष्टि से बनाई गयी है. इस किस्म को प्राकृतिक और कृत्रिम परिस्थितियों में स्ट्राइप और लीफ रस्ट रोग से बचाने के लिए रोग प्रतिरोधी किस्म के रूप में विकसित किया गया है। अगर बात करें इसकी उपादान क्षमता की तो यह किस्म 87.7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक की उपज दे सकती है। वहीं इसकी औसत उपज 79.4 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।इसकी खेती भी ऊपर बताई गयी अन्य दो किस्मो की तरह ही भारत के विभिन्न हिस्सों में की जा सकती है.

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