अगर आप एक किसान है तथा आप सरसों की खेती करते है तो यह पोस्ट आपके लिए बहुत ही ज्यादा खास होने वाली है इसीलिए आप पोस्ट को पूरा ध्यान से जरुर पढ़े.
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सरसों की खेती
अगर आप एक किसान है तथा आप सरसों की खेती करते है या अब सरसों की खेती करना चाहते है तो आपको बता दे की पिछले कुछ सालो से देखा जा रहा है की इसकी खेती से मिटटी की गुणवत्ता में कमी आ रही है और इसकी खेती करने से फसल चक्र भी प्रभावित होता है इसके कारण पहले की तुलना में किसानो के द्वारा इसकी खेती के रकवे को कम कर दिया गया है जिसकी वजह से हुआ यह है की सरसों के तेल के भाव बहुत बढ़ गए है इसकी वजह से अब सरकार इसकी खेती को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है और अब वैज्ञानिक भी इसकी नई एवं उन्नत किस्मो को विकसित करने में लगे हुए है जिससे की किसान इसकी अच्छी पैदावार कर सके और किसान अच्छा मुनाफा कमा पाए इन्ही प्रयासों की कड़ी में वैज्ञानिको ने ऐसी किस्म को विकसित किया है जिसकी खासियत यह है की यह किस्म सरसों की अन्य किस्मो के मुकाबले तीन गुना ज्यादा तेल देती है.जिसकी खेती आप अभी तत्काल में आने वाले रबी के सीजन में कर सकते है.
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सरसों की उन्नत किस्मे
अगर आप एक किसान है तो आपके लिए सरसों की खेती करना एक फायदे का सौदा हो सकता है क्योकि आप तो जानते ही होंगे की अभी बाजार में सरसों के तेल के भाव कितने ज्यादा है ऐसे में आप इन सरसों के तेल के तैयार करके बेचेंगे तो आपको बहुत ही ज्यादा मुनाफा प्राप्त होगा.अगर आप इसकी खेती कर रहे है तो आपको एक बार इसकी उन्नत किस्मो के बारे में जरुर जान लेना चाहिए.क्योकि किसी भी खेती में उसकी पैदावार में उसके बीजो का सही चुनाव काफी महत्वपूर्ण होता है.इसीलिए आपको इसकी उन्नत किस्मो की जानकारी होना अतिआवश्यक है.इसकी उन्नत किस्मो के नाम पूसा मस्टर्ड-32,पूसा सरसों 28,पूसा मस्टर्ड-21,पूसा बोल्ड तथा पूसा जय किसान ( बायो-902 ) है इन किस्मो के बारे में विस्तार से जानने के लिए पोस्ट को आगे पढ़े.
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पूसा मस्टर्ड-32 किस्म
सरसों की उन्नत किस्मो में पहला नाम पूसा मस्टर्ड-32 किस्म का है आपको बता दे की इसक किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था (IARI) पूसा के द्वारा विकसित किया गया है। सरसों की यह पहली एकल शून्य किस्म है. इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस किस्म में रतुआ रोग लगने का ख़तरा कम होता है तथा ये किस्म अन्य किस्मो के मुकाबले पैदावार भी बढ़िया देती है.आपको बता दे की इस किस्म में आपको सरसों के लगभग 17 से 18 दाने प्राप्त हो जाते है.तथा बात करे इसकी पैदावार की तो यह किस्म प्रतिहेक्टेयर में 25 क्विंटल तक की पैदावार दे देती है. आपको बता दे की इस किस्म इरूसिक अम्ल की मात्रा काफी कम होती है.इस वजह से इसके तेल के सेवन से ह्रदय रोग का ख़तरा कम होता है.इसके बीज से तैयार होने वाले तेल से झाग काफी कम बनता है इसके अतिरिक्त इसमें ग्लोकोसिनोलेट की मात्रा 30 माइक्रोसोल से भी कम होती है,जबकि सामान्यतः सरसों के तेल में इसकी मात्रा 120 माइक्रोसोल होती है आपको बता दे की यह किस्म पशुओ के चारे के लिए भी काफी उपयुक्त होती है.तथा यह किस्म 100 दिन से भी कम समय में भी तैयार हो जाती है.
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पूसा-28
यह सरसों की उन्नत किस्मो से एक किस्म है इसकी खासियत है की यह मात्र 105 दिनों में ही तैयार हो जाती है.इसका उत्पादन 17 से 18 क्विंटल प्रतिहेक्टेयर होता है तथा इसमें तेल की मात्र 21 प्रतिशत तक होती है.यदि आप हरियाणा,राजस्थान, पंजाब,उत्तरप्रदेश तथा राजस्थान राज्य के किसान है तो यह किस्म आपके लिये बहुत ही अच्छी साबित होगी.
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पूसा मस्टर्ड- 21 किस्म
अब बात करे तीसरी किस्म की तो यह किस्म सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। सरसों की इस किस्म में तेल की मात्रा 37 प्रतिशत पाई जाती है।बात करे इसके उत्पादन की तो इसका उत्पादन प्रतिहेक्टेयर में लगभग 18 से 21 क्विंटल होता है। तथा यह किस्म 137 से लेकर 152 दिनों में पककर तैयार होती है। सरसों की ये किस्म पंजाब, दिल्ली, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश हेतु उचित है।
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पूसा बोल्ड किस्म
यह भी सरसों की अच्छी किस्म होती है तथा इस किस्म की फलियाँ मोटी होती है तथा इसके एक हजार दानों का वजन लगभग 6 ग्राम होता है। तथा इसकी पैदावार काफी बढ़िया होती है इसकी पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार होती है। इस किस्म के सरसों में तेल की मात्रा सबसे अधिक यानि 42 प्रतिशत तक पाई जाती है। सरसों की यह किस्म राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, महाराष्ट्र क्षेत्रों के लिए काफी बढ़िया मानी जाती है। इस किस्म की फसल 130 से लेकर 140 दिन में आ जाती है।
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पूसा जय किसान (बायो-902)
सरसों की यह किस्म उन क्षेत्रो में उपयोग में लायी जाती है जहाँ पर सिंचाई की उत्तम व्यवस्था हो इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़िया होती है.यह विल्ट,तुलासिता तथा सफ़ेद रोली के रोग से प्रभावित नही होती है.यह प्रतिहेक्टेयर 18 से लेकर 20 क्विंटल हेक्टेयर तक पैदावार देती है. इसमें 38 से 40 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है इस किस्म के सरसों की फसल 130 से लेकर 135 दिनों में आ जाती है।
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