देश में मानसून ने दस्तक दे दी है इसी के साथ देश भर में किसनो ने खरीफ की फसलों की तैय्यारी शुरू कर दी है. देश में अधिकांश किसान धान की खेती करते हैं. कहीं कहीं पर इसकी खेती बुवाई करके की जाती है लेकिन ज्यादातर किसान इसकी नर्सरी लगाकर ही बुवाई करते हैं.फ़िलहाल किसान धान की नुर्सरी लगा रहे हैं ऐसे में ज़रूरी है की आप एक अच्छे किस्म की धान की नर्सरी लगायें जिससे की पैदावार अच्छी हो तो आज हम आपको बताने वाले हैं धान की 2 बहुत अच्छी किस्मे….
धान की खेती की तैयारी हुई शुरू
जून का महिना आते ही किसान धान की तैय्यारी करना शुरू कर देते हैं क्योंकि इसके लिए उन्हें पहले नर्सरी लगनी पड़ती है जिससे काम दो गुना बढ़ जाता है. धान की खेती देश की सबसे लोकप्रिय खेती है. धान की खेती के लिए बहुत अधिक मात्रा में पानी की जरुरत होती है इस समय वैसे ही पानी की काफी कमी है इसलिए सरकार ऐसी धान की किस्मो के विकास पर जोर दे रही है जिन्हें कम पानी की ज़रूरत होती है. हम जिन धान की किस्मों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं इन्हें कम मात्रा में पानी की जरूरत होती है. ऐसी धान कम पानी वाले इलाकों के किसानों के लिए बहुत फायेदेमंद है.
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कौनसी हैं ये किस्मे
धान की खेती की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए अलग अलग जगह पर खेती के लिए और अच्छे उत्पादन के लिए कई किस्मों का विकास किया गया है. इसका मुख्य कारण यह है ताकि किसान अपनी सुविधा के अनुसार आसानी से विकसित किस्मों का चयन कर सके और बेहतर से बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकें. धान की खेती करने वाले किसान अक्सर अपनी सुविधा और उसी के साथ जलवायु को देखते हुए सही बीज का चयन करते हैं. यदि बिहार की बात करें तो कृषि विज्ञान केंद्र पूसा ने यहां की मिट्टी के हिसाब से दो किस्मों की खेती करने की सलाह किसानों को दी है. ये दोनों किस्में राजेन्द्र श्वेता और राजेन्द्र विभूति हैं. ये दोनों ही बहुत कम समय में तैयार भी हो जाती है और इसका उत्पादन भी बहुत अच्छा होता है. बिहार के कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामपाल ने बताया कि जून के पहले सप्ताह से बेगूसराय में किसान धान लगाने की तैय्यारी शुरू कर देंगे.
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क्या है इनकी खासियत
सरकार किसानो के कल्याण के लिए कई योजनाये चलाती है और कई तरह की कार्य सरकार द्वारा जनकल्याण के लिए किये जाते हैं . अब बिहार में कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के कृषि विशेषज्ञ अंशुमान द्विवेदी ने कृषि विज्ञान केंद्र पूसा से राजेंद्र श्वेता और राजेंद्र विभूति धान के किस्म को लेकर बेगूसराय के विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी में इसका ट्रायल किया ताकि यह पता लगाया जा सके की यहाँ की मिट्टी के हिसाब से इन फसलों की खेती की जा सकती है या नहीं. जिसके बाद यह पता चला की यहाँ पर आराम से इन किस्मो की खेती की जा सकती है . ट्रायल सफल रहने के बाद कृषि वैज्ञानिक किसानो को इन दोनों किस्म के धान के बीज को लगाने की सलाह दे रहे हैं. इसके लिए किसानों को बकायदा प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जाएगी. इच्छुक किसान कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर में आकर प्रशिक्षण ग्रहण कर सकते हैं.
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कम पानी में भी अच्छा उत्पादन देती हैं ये धान
अगर बात की जाये बिहार की तो बेगूसराय जिले के ग्रामीण इलाके के खेतों में राजेंद्र विभूति की खेती की जा सकती है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार बेगूसराय जिले में 17061 हेक्टेयर बंजर भूमि है. जबकि 11001 हेक्टेयर परत वाली भूमि है. इस तरह की जमीन पर राजेंद्र विभूति किस्म के धान की उपज की जा सकती है. इस धान की खासियत यह है की इसके पौधों में ज्यादा दिन तक पानी न भी मिले तो उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ता है. यह फसल बहुत ही कम पानी में पककर तैयार हो जाती है. वही राजेंद्र श्वेता किस्म की बात की जाए तो इसके लिए भी खेतों में पानी की जरूरत तो है, लेकिन इतनी ज्यादा जरूरत नहीं है. इस बार इन दोनों किस्मों पर मुख्य रूप से जिला कृषि कार्यालय और केवीके फोकस कर रहा है. अगर आप इन दोनों किस्म के धान की खेती करते हैं तो पर प्रति हेक्टेयर चार क्विंटल तक उपज बढ़ जाती है.
ये किस्मे देश के सभी हिस्सों में तो नहीं लगे जा सकती लेकिन ऊपर बताये अनुसार जमीन पर खेती की जायेतो इन परिस्थितियों के हिसाब से इनकी खेती से किसानो को अवश्य ही फायेदा होगा.
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