हिमाचल प्रदेश में उत्पादकों का एक बहुत बड़ा वर्ग अफीम की खेती को वैध कराने की लगातार मांग कर रहा है. क्योकि फलो की खेती को मौसम की मार का सामना लगातार करना पड़ रहा है. साथ ही प्रतिस्पर्धा के कारण उनकी कमाई बुरी तरह से प्रभावित हुई है. वही हिमाचल राज्य सरकार के ऊपर 75000 करोड़ के भारी वित्तीय कर्ज के जाल में फंसी हुई है. इसीलिए राज्य के मुख्यमंत्री अफीम की खेती को वैध करने के लिए विचार कर रही है.
सरकार का भरेगा खजाना
फार्मास्युटिकल उद्योग में लगातार बढती अफीम की मांग के कारण ओषधीय उद्देश्य की पूर्ती के लिए एवं मुख्यतः ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए अफीम की खेती को वैध करने का प्रयास सरकार के द्वारा किया जा रहा है. सरकार को अफीम की खेती से प्रतिवर्ष लगभग 1000-1200 करोड़ रूपये का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हो सकता है जिससे सरकार अपने ऊपर बढ़ते कर्ज को कम करने में मदद मिल सकती है. साथ ही राज्य की जलवायु इसकी खेती के अनुकूल है. मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान ने इसकी खेती करने के लिए चुनिंदा जगहों में अनुमति दी है. जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है.
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सेब बागानों को होगा फायदा
शिमला के एक प्रमुख सेब उत्पादक रमेश सिंगटा ने कहा, भांग की नियंत्रित खेती सेब उत्पादकों के लिए पारिश्रमिक रिटर्न सुनिश्चित करेगी, जो केवल कमाई के लिए उन पर निर्भर हैं.उन्होंने कहा, चूंकि अधिकांश सेब बागानों को कायाकल्प की जरूरत है, जो एक महंगा प्रस्ताव है, अफीम की वैध खेती से अच्छा मुनाफा होगा.
अवैध खेती पर कसेगा शिकंजा
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि कुल्लू, मंडी, शिमला और चंबा जिलों के विशाल इलाकों में भांग और अफीम के खेत अवैध रूप से उगाए जाते हैं, जिससे नशीली दवाओं की खेती, तस्करी और इसके उपयोग की गंभीर समस्या पैदा होती है. कुल्लू जिले में अफीम की खेती मलाणा, कसोल और अन्य क्षेत्रों के ऊंचे इलाकों तक सीमित है, जबकि चंबा जिले में, जम्मू और कश्मीर के डोडा क्षेत्र की सीमा पर यह मुख्य रूप से केहर, तिस्सा और भरमौर के दूरस्थ क्षेत्रों में की जाती है.
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हिमाचल प्रदेश में उत्पादित 60% से अधिक अफीम और भांग की तस्करी इजरायल, इटली, हॉलैंड और अन्य यूरोपीय देशों जैसे देशों में की जाती है. बाकी , गोवा, पंजाब और नेपाल जैसे भारतीय राज्यों में भेजा जाता है.
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